
लंगर खाते किसान
– फोटो : अमर उजाला (फाइल)
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सार
एआईकेएसीसी के अनुसार, सरकार समझौते की विभिन्न बातें वार्ता में चलाने की कोशिश कर रही है, हालांकि समझौते की कोई स्थिति ही मौजूद नहीं है। किसान अपनी जीविका की रक्षा और संवैधानिक अधिकार पर कोई समझौता नहीं कर सकते…
विस्तार
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक योगेंद्र यादव कहते हैं, इतना कुछ होने के बाद भी केंद्र इस मुगालते में है कि किसान चुपचाप चले जाएंगे। सरकार की मंशा है कि आंदोलन लंबा खिंचे। छह सात घंटे तक बैठक चलती है और उसके बाद मंत्री कहते हैं कि अच्छे माहौल में बातचीत हुई है। किसानों ने अपनी बात रखी है। सरकार भी चाहती है कि ये आंदोलन जल्द से जल्द खत्म हो। अगली बैठक में कुछ अच्छा नतीजा सामने आएगा। कृषि मंत्री की ये बयानबाजी कई बार सुन चुके हैं। आठ दिसंबर को सरकार की सारी गलतफहमी दूर हो जाएगी।
योगेंद्र यादव के मुताबिक केंद्र सरकार पहले कह रही थी कि ये तो केवल पंजाब का आंदोलन है। अब देखिये, महाराष्ट्र से भी किसान दिल्ली के लिए निकल पड़े हैं। राजस्थान से आ रहे किसानों के जत्थे राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से दिल्ली में प्रवेश करेंगे। यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल सहित तकरीबन सभी राज्यों में केंद्र सरकार की किसान विरोधी सोच को लेकर गुस्सा व्याप्त है।
किसान नेता रामपाल जाट कहते हैं कि सरकार नहीं चाहती कि ये आंदोलन खत्म हो। उसकी मंशा है कि किसी भी तरह इस आंदोलन को बदनाम कर दिया जाए। विभिन्न किसान संगठनों और उनके नेताओं के बीच में फूट डलवाने का असफल प्रयास किया गया है। सरकार इस आंदोलन को तोड़ने के लिए जितने भी प्रयास कर रही है, उससे यह आंदोलन और ज्यादा आगे बढ़ रहा है।
केंद्र सरकार के बहकावे में किसान नहीं आएंगे। तीनों कानूनों को रद्द किया जाए, इससे कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा। एआईकेएसीसी ने स्पष्ट किया है कि ये तीनों कानून, किसानों के कल्याण से परे हैं। ये कानून कॉरपोरेट द्वारा खेती पर नियंत्रण की रक्षा करते हैं। अतः इन्हें रद्द किया जाना ही एकमात्र समाधान है।
एआईकेएसीसी के अनुसार, सरकार समझौते की विभिन्न बातें वार्ता में चलाने की कोशिश कर रही है, हालांकि समझौते की कोई स्थिति ही मौजूद नहीं है। किसान अपनी जीविका की रक्षा और संवैधानिक अधिकार पर कोई समझौता नहीं कर सकते। सरकार को संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को छीनने का कोई अधिकार नहीं है।
तीन कानूनों में स्पष्ट लिखा है कि कॉरपोरेट सेक्टर की निजी मंडियां स्थापित होंगी, उन्हें कानूनी लाभ भी मिलेगा। ऐसी स्थिति में किसान बर्बाद हो जाएंगे। इस आंदोलन में अब दूसरे सामाजिक संगठन भी साथ आ रहे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब के अध्यक्ष और सांसद भगवंत मान ने घातक कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा 8 दिसंबर के भारत बंद को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा करते हुए कहा है कि यह मसला किसी एक राजनैतिक, धार्मिक या प्रांत के एक समुदाय का नहीं है, बल्कि पूरे देश के किसानों का है।
ये लोग अपने साथ-साथ कृषि प्रधान देश के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार को चेताते हुए कहा, कि वह किसानों की हां में हां कहकर मामले का तुरंत निपटारा करे। इस आंदोलन को लंबा खींचने की चाल सरकार को ही उल्टा पड़ेगी। पहले ये आंदोलन क्या था और अब कहां पहुंच गया है। केंद्र सरकार को ये बात समझनी चाहिए।
वह इसे जितना कमजोर बनाने की कोशिश करेगी, किसान आंदोलन उतने ही जोश के साथ आगे बढ़ता जाएगा। मोदी सरकार को लगता है कि मसले को हल करने की बजाए लंबा खींचकर इस अभियान को तोड़ा जा सकता है तो यह उनका वहम है।