
दरअसल, चंबल के बीहड़ों में कभी आतंक का पर्याय रहे कुछ कुख्यात डाकुओं और इस दस्यु आतंक का खात्मा करने के पुलिस के प्रयासों की दास्तान को भिंड जिले के एक संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, दस्यु सुंदरी से सांसद बनी फूलन देवी, आतंक का दूसरा नाम निर्भय गूजर, डाकू मलखान सिंह और एथलीट से दस्यु बने पान सिंह तोमर उन लोगों में शामिल हैं जिनके जीवन की कहानियों का संग्रहालय में उल्लेख किया जाएगा.
इसलिए लोगों ने हाथ में उठाईं बंदूकें
गौरतलब है कि आम लोगों के दस्यू बनने के पीछे कई कहानियां हैं. इन पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. जानकारी के मुताबिक, गरीबी और जातिवाद इसके पीछे मुख्य कारण थे. यहां पर जो जमीन थी वो जल्दी ही बंजर हो जाती थी. इससे लोग जीवन-यापन नहीं कर पाते थे. दूसरी ओर जमींदार और ऊंची जाति के लोगों के जुर्म इतने बढ़ जाते थे कि लोगों के पास बदला लेने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं होता था.
1990 में बड़ी संख्या में हुआ था सरेंडर
बता दें, 1990 में कई खूंखार डाकुओं ने सरेंडर किया था. जेपी नारायण और विनोबा भावे के सामने कई दस्युओं ने हथियार डाले थे. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में करीब एक हजार डाकुओं ने समर्पण किया था. 1982 में खूंखार मलखान सिंह ने सरेंडर किया था, जबकि ठीक अगले साल 1983 में फूलन देवी ने भी सरेंडर कर दिया था.
मलखान सिंह ने खड़े किए थे सवाल
मामले को लेकर पूर्व डाकू मलखान सिंह ने कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं. उन्होंने कई बार कहा है कि आखिर सिस्टम से पूछो तो कि किसने आम लोगों को डाकू बनाया. और डाकुओं के सरेंडर के बाद आखिर उनके पुनर्वास के लिए किया क्या गया.
एसपी ने कहा– बहादुर पुलिसवाले गुमनामी में क्यों जिएं
भिंड के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह ने बताया कि इस संग्रहालय के अगले महीने खुलने की संभावना है और मध्य प्रदेश पुलिस के जवान इसकी स्थापना के लिए धन दान कर रहे हैं. उन्होंने कहा-अब तक चंबल के बीहड़ों के डाकुओं का महिमामंडन किया जाता रहा है. अब इन डाकुओं के आतंक के पीड़ितों के साथ-साथ उन पुलिसकर्मियों को सुर्खियों में लाया जाएगा, जिन्होंने इस आतंक का खात्मा करने के लिए लड़ाई लड़ी.
एसपी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि यह आम धारणा बन चुकी है कि कुछ लोग अत्याचार एवं यातनाएं झेलने के बाद निराश होकर डाकू बने. लेकिन इस दस्यु आतंक के पीड़ितों को जो परेशानी झेलनी पड़ी, वह अब तक प्रकाश में नहीं आई हैं. इन डाकुओं से लड़ने वाले पुलिस बल के नायक भी गुमनाम बने हुए हैं. यह सब संग्रहालय में, सार्वजनिक डोमेन में लाया जाएगा।
संग्रहालय के जरिए देंगे संदेश
सिंह ने बताया कि भिंड पुलिस चंबल के डाकुओं के इतिहास को एक संग्रहालय के जरिए लोगों को बताना चाहती है और संदेश देना चाहती है कि हिंसा से हमेशा नुकसान ही होता है. इससे किसी का फायदा नहीं होता है. इसके अलावा, इसका उद्देश्य अपराध की दुनिया में कदम रखने वालों को सबक और संदेश देना भी है. चंबल रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक राजेश हिंगणकर ने कहा- इस संग्रहालय में चंबल से डाकुओं को खत्म करने में जान गंवाने वाले 40 से अधिक पुलिसकर्मियों और अधिकारियों का डेटाबेस होगा. उनकी तस्वीरों और पदकों को भी इसमें दिखाया जाएगा.