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चिकित्सा समिति ने कहा था कि इस मामले की परिस्थितियों के मद्देनजर गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि गर्भपात अधिनियम के तहत 20 हफ्ते तक के गर्भ को एक या उससे अधिक डॉक्टरों की सहमति से गिराया जा सकता है लेकिन 20 हफ्ते से अधिक के गर्भ को तभी समाप्त किया जा सकता है जब अदालत इस नतीजे पर पहुंचे कि गर्भ से बच्चे एवं उसकी मां की सेहत एवं जीवन को खतरा हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि 25 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता का पिता दिहाड़ी मजदूर है एवं कथित तौर पर आशा कार्यकर्ता द्वारा बेटी से दुष्कर्म करने एवं गर्भ ठहरने की जानकारी होने पर उच्च न्यायालय का रुख किया। मामले में आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कर जांच की जा रही है। अदालत ने निर्देश दिया कि भ्रूण के डीएनए को जांच के लिए एक साल तक सीलबंद कर सुरक्षित रखा जाए।