
आपदा के बाद क्षेत्र में पहुंचे लोग
– फोटो : अमर उजाला फाइल फोटो
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इस घटना के चमश्दीद रहे लोग बताते हैं कि यह ठीक बरसात से पहले की घटना थी। केन्द्रीय जल आयोग से सेवानिवृत सर्वेयर पुष्कर सिंह शाह ने बताया कि इस कारण पिडंर नदी में भी लाखों टन मलबा और गाद आई थी। वो अलग बात है कि इस समय इस नदी पर कोई जल विद्युत परियोजना नहीं थी। लेकिन इससे पिंडारी ग्लेशियर से कर्णप्रयाग तक कई हैक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हो गयी थी।
इस बाढ़ से सबसे अधिक नुकसान जलीय जीवों को हुआ था। बाढ़ के साथ गाद आने के चलते पिंडर नदी में रहने वाली महाशीर और ट्राउट मछलियों को भारी नुकसान हुआ था। थराली के 82 वर्षीय गौरी दत्त बताते हैं कि नदी किनारे रहने वाले कई लोग इस जल प्रलय में बह गये और सैकड़ों जानवर भी बाढ़ की भेंट चढ़ गये। जो लोग भागकर ऊपरी क्षेत्रों में चले गये उनकी जान बच गयी।
लोग इसे हिमालय में कोई पहाड़ टूटने की घटना मानते थे। जैसे ही कुछ समय बाद पानी का स्तर कम हुआ तो नदी के किनारे और खेतों के मलबे में चारों तरफ मृतक मछलियां नजर आईं। वही समय था जब हमने पिंडर में 40 से 50 किलो भारी वजनी मछली मरी हुई देखी। जिसको कि कुल्हाड़ी से काटा गया। उस जल प्रलय में इतनी मछलियां मरी कि लोगों को मरी मछलियों को पिंडर में ही बहाना पड़ा।