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नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने लिवर और पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) अस्पताल को क्रॉनिक लीवर की बीमारी से पीड़ित मरीज संजय सिंह का निशुल्क इलाज करने का निर्देश दिया है। अदालत ने माना कि आर्थिक रूप से कमजोर संजय सिंह इलाज का खर्च वहन करने में असमर्थ है। उसका लीवर ट्रांसप्लांट होना है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने यह आदेश अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से संजय सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची के अधिवक्ता अग्रवाल ने अदालत को बताया कि बहादुरगढ़ में एक फैक्टरी में काम करने वाले संजय सिंह का वेतन मात्र दस हजार रुपये है।
उन्होंने कहा कि संजय के दो बच्चे हैं और बेटी नर्सरी में पढ़ रही है। संजय सिंह ने तबीयत खराब होने पर 29 अक्तूबर को मौहल्ला क्लीनिक में संपर्क किया तो उसके काफी टेस्ट करवाए गए और फिर संजय गांधी अस्पताल में भेज दिया गया। उसकी तबीयत खराब होने पर उसे राम मनोहर लोहिया अस्पताल रैफर किया गया।
वहां उसे बताया गया कि उसका लीवर ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा और पूरी सुविधाएं न होने का तर्क देकर आईएलबीएस अस्पताल में रैफर किया गया। वहां उसे भर्ती होने के लिए पैसे जमा करवाने के लिए कहा गया। इतना ही नहीं आर्थिक रूप से कमजोर होने का तर्क देने के बावजूद अस्पताल ने निशुल्क इलाज से मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल को संविधान में मिले अधिकारों के तहत निशुल्क इलाज पाने का अधिकार है। ऐसे में अस्पताल व दिल्ली सरकार को निर्देश दिया जाए कि उनके मुवक्किल को निशुल्क इलाज प्रदान किया जाए।
नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने लिवर और पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) अस्पताल को क्रॉनिक लीवर की बीमारी से पीड़ित मरीज संजय सिंह का निशुल्क इलाज करने का निर्देश दिया है। अदालत ने माना कि आर्थिक रूप से कमजोर संजय सिंह इलाज का खर्च वहन करने में असमर्थ है। उसका लीवर ट्रांसप्लांट होना है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने यह आदेश अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से संजय सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची के अधिवक्ता अग्रवाल ने अदालत को बताया कि बहादुरगढ़ में एक फैक्टरी में काम करने वाले संजय सिंह का वेतन मात्र दस हजार रुपये है।
उन्होंने कहा कि संजय के दो बच्चे हैं और बेटी नर्सरी में पढ़ रही है। संजय सिंह ने तबीयत खराब होने पर 29 अक्तूबर को मौहल्ला क्लीनिक में संपर्क किया तो उसके काफी टेस्ट करवाए गए और फिर संजय गांधी अस्पताल में भेज दिया गया। उसकी तबीयत खराब होने पर उसे राम मनोहर लोहिया अस्पताल रैफर किया गया।
वहां उसे बताया गया कि उसका लीवर ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा और पूरी सुविधाएं न होने का तर्क देकर आईएलबीएस अस्पताल में रैफर किया गया। वहां उसे भर्ती होने के लिए पैसे जमा करवाने के लिए कहा गया। इतना ही नहीं आर्थिक रूप से कमजोर होने का तर्क देने के बावजूद अस्पताल ने निशुल्क इलाज से मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल को संविधान में मिले अधिकारों के तहत निशुल्क इलाज पाने का अधिकार है। ऐसे में अस्पताल व दिल्ली सरकार को निर्देश दिया जाए कि उनके मुवक्किल को निशुल्क इलाज प्रदान किया जाए।